हिस्टीरिया, के लिए मॉडर्न मेडिकल साइंस में कोई परिभाषा नहीं है। यह एक मानसिक रोग है जिसमें दिमाग के साथ साथ बहुत से शारीरिक लक्षण देखे जाते हैं। एलॉपथी में हिस्टीरिया के लिए कोई मेडिकल टर्म नहीं है। हिस्टीरिया, बहुत ज्यादा या बेकाबू भावना या उत्तेजना के लिए पुराने समय में इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द है।
मनोवैज्ञानिक विकार हिस्टीरिया, पुराने समय में इस्तेमाल उस रोग के लिए इस्तेमाल होने वाला शब्द है, जिसमें मनोवैज्ञानिक तनाव से शारीरिक लक्षण (somatization) का होना या आत्म-जागरूकता में परिवर्तन (जैसे चयनात्मक भूलने की बीमारी, सुनाई नहीं देने की या ऊँचा सुनने की बीमारी, झटके, दौरे आदि ), हो जाते हैं।
ज्ञात मानसिक रोगों में हिस्टीरिया, शायद सबसे अधिक प्राचीन व्याधि है। हिस्टेरिया, एक तरह का पागलपन है तथा इसका वर्णन हिप्पोक्रेट्स ने किया है। यह रोग स्त्रियों में ज्यादातर देखा जाता है। हिप्पोक्रेट्स के समय में ही इस रोग को नाम दिया गया हिस्टीरिया। यह शब्द ग्रीक शब्द hystera (गर्भाशय uterus) से निकाला गया क्योंकि उस समय यह समझा जाता था कि युट्रेस / गर्भाशय, श्रोणि में अपनी सामान्य स्थिति से विस्थापित हो कर पूरे शरीर में घूमते हुए रोग के लक्षण पैदा करता है।
अंग्रेजी चिकित्सक थॉमस सिडेनहैम ने 1697 कल्पना की हिस्टीरिया से विकृति का स्रोत गर्भाशय नहीं केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र है और भावनात्मक अवस्था से शारीरिक विकार और उन्माद होता है। सिडनहेंम ने हिस्टीरिया को “प्रोटियस,” के रूप में संदर्भित किया जिसमें लगभग किसी भी बीमारी के लक्षण पैदा करने की क्षमता है। यह मानसिक रोग होते हुए भी शरीर के अंगों पर असर दिखाते हुए व्यक्ति लाइफ को प्रभावित कर देता है।
उन्नीसवीं सदी में, फ्रांसीसी चिकित्सक पॉल ब्रिकेट ने इस रोग परिभाषित किया की यह एक क्रोनिक सिंड्रोम है जिसमें कई चिकित्सकीय दृष्टि से नहीं समझे जाने वाले लक्षण जैसे शरीर के कई अंग प्रणालियों में लक्षण, शारीरिक लक्षण जैसे उन्माद ,उल्टी, बेहोशी, पागलपन, पक्षाघात, बहरापन, विचित्र तरीके से शरीर का हिलना और मिर्गी जैसे दौरे दिखाई देते हैं।
फ्रायड ने इसे मनोवैज्ञानिक रोग बताया। अचेतन मन में दबी इच्छाएं, शरीरिक ज़रूरतों की पूर्ति नहीं होना, बुरे अनुभव या यादें, गरीबी की दिक्कतों, मन के संतुष्ट नहीं होने आदि के कारण और असहनीय मनोवैज्ञानिक संघर्षों को हल करने के लिए रोगी का दिमाग मानसिक लक्षणों को शारीरिक लक्षणों में “परिवर्तित” कर देता है जिससे रोगी को दौरे, बेहोशी, कमोरी, अंगों के ठीक होते हुए भी बीमार लगते हैं।
फ्रायड के काम ने रोग के बारे में सैद्धांतिक आधार बनाया औए इसके इलाज़ के लिए मनोविश्लेषण और तकनीक जिसमें वे उन्माद का इलाज करते थे, उपलब्ध कराने की बाद कही।
बीसवीं सदी के मध्य तक मनोचिकित्सा ने psychiatry हिस्टीरिया के सिंड्रोम को माना और उसे बार बार बिना कारण के होने वाले फिजिकल लक्षणों के रूप में परिभाषित किया। इसे ऐसा मानसिक रोग माना गया जोकि पूरे शरीर के किसी भी अंग में रोग के लक्षण पैदा कर देता है।
क्या मिर्गी और हिस्टीरिया एक ही है?
नहीं, दोनों में अंतर है।
हिस्टीरिया का दौरा सोते समय नहीं आता। हिस्टीरिया का दौरा धीरे-धीरे होता है और लंबे समय तक चलता है। दौरे के दौरान रोगी बोलते रह सकते हैं। इसमें रोगी खुद को नियंत्रित करने की कोशिश करता है और दौरे में गिरने के दौरान कुछ पकड़ने की कोशिश कर सकता है। हिस्टीरिया रोग ज्यादातर महिलाओं को प्रभावित करता है।
मिर्गी में भी दौरे पड़ते हैं। लेकिन यह दौरे किसी भी समय हो सकते है, यहां तक कि सोते समय भी मिर्गी का दौरा अचानक आता है और कम देर के लिए होता है। इसमें रोगी बोलता नहीं और बेहोश हो सकता है। रोगी अचानक गिर सकता है। मिर्गी पुरुषों और महिलाओं को समान रूप से प्रभावित करती है।
हिस्टीरिया के कारण क्या हो सकते हैं?
हिस्टीरिया ज्यादातर औरतों में देखा जाता है लेकिन पुरुष और बच्चे भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। इसके या किसी भी मानसिक रोग से प्रभावित होना मनुष्य की प्रकृति, उसकी अनुवांशिकी, मन की कोमलता, मनः स्थिति आदि पर निर्भर है। कुछ लोग कम में ही संतुष्ट हो जाते हैं। लेकिन बहुत से लोगों को जब मनवांछित वस्तुएं नहीं मिलती तो उसके अतृप्त मन से प्रभावित हो शारीरिक लक्षण दिखने लगते हैं। फ्रायड ने इसे सेक्सुअल ज़रूरत नहीं पूरी होने से स्त्रियों में इस रोग के अधिक देखे जाने के बारे में लिखा है। फ्रायड ने कहा स्त्री जिसमें सेक्सुअल इच्छाएं नहीं पूरी होती, उसे ऐसे दौरे पड़ सकते हैं।
इसके होने क बहुत से कारण हो सकते हैं, जैसे:
- कम बुद्धि होना
- काम नहीं करना चाहना
- घर में झगड़े
- चिंता, तनाव
- जटिल परिस्थियों के अनुकूल नहीं हो पाना
- जिद्दी होना
- दिमागी और शारीरिक रूप से व्यक्ति का परेशान रहना
- दु:खद घटना
- परिवार में समस्या, सब ठीक नहीं होना
- पलायनवादी सोच
- पैसे, गहने या यौन ज़रूरत पूरी नहीं होना
- बहिर्मुखी extrovert व्यक्तित्व
- भय
- मन के अनुसार काम नहीं होना
- मानसिक आघात
- मानसिक रोग
- व्यक्तित्व का कमजोर होना
यह रोगी की पलायनवादी सोच का परिणाम भी हो सकता है जिससे वह काम करने से भी बच जाता है और बीमार होने से दूसरों द्वारा की जाने वाली देखभाल और सहानभूति का भी पात्र बन जाता है। इस तरह से उसे कुछ करना नहीं पड़ता और वह खुद को रोगी बता हर तरह की जिम्मेदारी से बच जाता है।
हिस्टीरिया के क्या लक्षण हो सकते हैं?
- एक या एक से अधिक अंगों के पक्षाघात
- पूर्ण संवेदनक्षीणता
- शरीर में अस्पष्ट ऐंठन (हिस्टीरिकल फिट)
- किसी अंग में ऐंठन, थरथराहट
- बोलने की शक्ति का नष्ट होना
- निगलने तथा श्वास लेते समय दम घुटना
- गले या आमशय में ‘गोला’ बनना
- बहरापन
- हँसने या चिल्लाने का दौरा आदि है।
हिस्टीरिया का उपचार क्या है?
यह मानसिक रोग है और इसके लिए मनोविकार विज्ञानी / साइकेट्रिस्ट Psychiatrist से मिलना चाहिए। मनोविज्ञानी एक ऐसा चिकित्सक होता है जो मनोरोग का विशेषज्ञ होता है और मानसिक विकारों के उपचार के लिए योग्य होता है। सभी मनोचिकित्सक, चिकित्सा मूल्यांकन और मनश्चिकित्सा में प्रशिक्षित होते हैं।
- सम्मोहन
- दवाएं
- पुनर्शिक्षण relearning
- संवेदनात्मक व्यवहार
- पारिवारिक समायोजन
हिस्टीरिया के उपचार के कुछ मामलों में हिप्नोसिस / सम्मोहन hypnosis से उपचार हो सकता है। हिप्नोसिस-मानसिक रोगियों के व्यवहार में परिवर्तन लाने तथा उसे सुधारने के लिए हिप्नोटिज्म का तरीका है। यह चिकित्सीय तकनीक है जिसमें चिकित्सक रोगी के दिमाग का ध्यान केंद्रित करने के लिए डिज़ाइन की गई प्रक्रिया का पालन करता है।
हालांकि सम्मोहन विवादास्पद विषय है, लेकिन ज्यादातर चिकित्सक अब सहमत हैं कि यह दर्द, चिंता और मनोदशा संबंधी विकारों सहित कई परिस्थितियों के लिए एक शक्तिशाली, प्रभावी चिकित्सीय तकनीक हो सकती है। सम्मोहन लोगों को अपनी आदतों को बदलने में मदद कर सकता है, जैसे धूम्रपान छोड़ना।
सम्मोहन के बारे में केवल फिल्मों में ही दिखाया जाता हैं, लेकिन सम्मोहन को मानसिक चिकित्सा में वास्तविक जीवन में उपयोग कर अवसाद, गैस्ट्रो-आंत्र विकार और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं वाले रोगी ठीक हो सकते हैं। क्योंकि सम्मोहन लोगों को प्रबंधित करने में मदद कर सकता है, और कुछ मामलों में, बीमारी से उबरने में, उपचार योजनाओं आदि में यह अधिक सामान्य हिस्सा बनता जा रहा है।
सम्मोहन, विभिन्न प्रकार के दर्द से पीड़ित ज्यादातर लोगों के लिए प्रभावी होने की संभावना है, लेकिन कुछ संख्या के रोगियों में यह काम नहीं करेगा जिनमें कृत्रिम निद्रावस्था नहीं लाई जा सकती।
लक्षणों के आधार पर कुछ दवाएं भी दी जा सकती है। एलोपैथिक दवाएं डॉक्टर के पर्चे पर मिलती है। कुछ आयुर्वेदिक दवाएं हैं जो otc है और दी जा सकती है। आयुर्वेद की मानसिक रोग की दवाएं दी जा सकती हैं। यह दवाएं दिमाग को बल देती हैं, नींद लाती हैं और मूड ठीक करने में सहयोगी है।
हिस्टीरिया में निम्न दवाएं लाभप्रद हो सकती हैं:
- सारस्वतारिष्ट
- ब्राह्मी घृत
- ब्राह्मी स्वरस
- वच चूर्ण
- सारस्वत चूर्ण
- पंचगव्य घृत
- अश्वगंधा घृत
- वचादि घृतं
- पंचगव्य घृत और महापंचगव्य घृत
त्रिफला, त्रिकटु, जटामांसी, शतावर, ब्राह्मी, द्राक्षा, पेठे, आंवले, हींग और ब्राह्मी का सेवन भी लाभप्रद है। Brahmi is the best drug for mental disorders। चिंता करना, काम, क्रोध, बहुत अधिक मेहनत करना, खाना नहीं खाना, तीखा, गर्म, भारी भोजन आदि को नहीं करने की सलाह दी जाती है। रात में बहुत देर तक नहीं जागने की भी सलाह दी जाती है। घी, दूध, फल और अन्य पौष्टिक पदार्थ खाने चाहिए। मानसिक रोगों में मेद्य रसायनों का प्रयोग किया जाना चाहिए। शंखपुष्पि के पौधे से निकाला ताजा रस भी अच्छा मेद्य रसायन है और मानसिक विकारों में प्रमुखता से प्रयोग होता है।
मानसिक रोग के लक्षणों के आधार पर ही चिकित्सा की दवाएं, तरीका और अवधि निर्भर है और यह व्यक्ति से व्यक्ति अलग हो सकता है। सही निदान और उपचार मनोवैज्ञानिक से मिलकर ही तय किया जा सकता है।