निफा वायरस | निपा वायरस (एनआईवी) संक्रमण What is Nipah Virus? Symptoms, Prevention & Cure

निफा वायरस, निपा या निपह वायरस, इसे शोर्ट में एन आई वी Nipah virus (NiV) कहते हैं, एक ऐसा वायरल इंफेक्शन है जो फ्रूट बैट्स से इंसानों और जानवरों को अपनी चपेट में लेता है।

निफा वायरस Nipah virus (NiV), संक्रमण एक नया उभरता हुआ जानवरों से फैलने वाला वायरस है जो जानवरों और मनुष्यों दोनों में गंभीर बीमारी का कारण है। वायरस का प्राकृतिक होस्ट चमगादड़ हैं।

निफा वायरस, निपा या निपह वायरस, इसे शोर्ट में एन आई वी Nipah virus (NiV) कहते हैं, एक ऐसा वायरल इंफेक्शन है जो फ्रूट बैट्स से इंसानों और जानवरों को अपनी चपेट में लेता है। 1998 में पहली बार मलेशिया के कांपुंग सुंगई निफा में इसके मामले सामने आए थे। यह इंफेक्शन पहले सुअरों में देखा गया और बाद में यह इंसानों तक पहुंच गया। साल 2001 से 2007 तक Nipah Virus इंफेक्शन के करीब 71 मामले में सामने आए थे। जिनमें 50 लोगों की मौत हुई थी। ये सभी मामले बांग्लादेश से सटे हुए पश्चिम बंगाल में सामने आए थे।

भारत में आजकल, इसे केरल में देखा जा रहा है। केरल के कोझीकोड और मालापुरम (मल्लापुरम) जिले में निपा वायरस Nipah से 2 सप्ताह के अंदर करीब 11 लोगों की मौत हो चुकी है। पुणे वाइरोलोजी इंस्टीट्यूट ने दो ब्लड सैंपल्स की जांच के बाद उनमें Nipah Virus होने की बात पुष्टि की है। कोझीकोड़ के जिलाधिकारी ने निपाह वायरस के चलते 6 लोगों की मौत की पुष्टि की है।

केरल के कोझीकोड जिले में Nipah Virus से तीन लोगों की मौत के मामले की जांच के लिये केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक उच्च स्तरीय दल को वहां भेजा गया है। केरल की स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री के अनुसार, वायरल सीधे संपर्क, स्‍पर्श या शरीर के द्रवों के जरिए फैल रहा है।

केरल में निपाह वायरस के कारण मृत हुए व्यक्तियों के घर पर स्वास्थ्य अधिकारियों ने पाया कि उनके घर में एक कुंआ था, जिसमें बहुत से चमगादड़ भरे थे। Nipah Virus चमगादड़ों से फैलता है। संक्रमित चमगादड़ों, सुअरों और एनआईवी से ग्रस्त लोगों के साथ सीधे तौर पर संपर्क में आने से एनआईवी इंसानों और जानवरों में फैल रहा है।

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क्योंकि यह पीड़ित लोगों के पास जाने या उन्हें छूने से फैलता है इसलिए ऐसे लोगों के लिए विशेष सावधानी की जानी चाहिए। 

इस वायरस से पीड़ित व्यक्ति का इलाज करने वाले डॉक्टर्स और देखभाल में लगे कर्माचरियों को सावधानियां बरतने की विशेष ज़रूरत है।

इसके अलावा जिस लैब में जांच के लिए ब्लड सैंपल लिए जा रहे हैं उन्हें भी सावधानी से काम करने की जरूरत है।

भारत में निफा वायरस

केरल के तटीय कोझिकोड क्षेत्र में यह वायरल बुखार फैला हुआ। इससे मरने वाले दो व्यक्तियों के रक्त और शरीर के तरल नमूने में इस वायरस को पाया गया।

केरल सरकार द्वारा कोझीकोड में होने वाली मौतों के लिये ज़िम्मेदार कारक के रूप में ‘निफा वायरस’ की पुष्टि की गई है।

निफा वायरस या निपा वायरस (एनआईवी) संक्रमण क्या है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार निपाह वायरस (NiV) तेज़ी से उभरता वायरस है, जो जानवरों और इंसानों में गंभीर बीमारी का कारण है। निफा वायरल संक्रामक बीमारी है। इसके ममले साल 1998 में मलेशिया और 1999 में सिंगापुर में देखे जा चुके है। ये चमगादड़ से पहले पालतू सुअरों से फैला फिर इससे कई अन्य पालतू पशुओं जैसे कुत्तों, बिल्लियों, बकरी, घोड़े और भेड़ आदि इन्फेक्ट हो गये।

निपा वायरस (एनआईवी) संक्रमण ज़ूनोटिक बीमारी है यानी की जानवर जनित है। यह वायरस इंसानों के साथ-साथ जानवरों को भी प्रभावित करता है। यह वायरस फ्रूट बैट्स के माध्यम से इंसानों और जानवरों पर आक्रमण करता है।

निफा वायरस को नाम, सबसे पहले मलेशिया के एक गांव में फैलने के बाद दिया गया। इसे नाम मलेशियाई प्रायद्वीप के एक गांव सुंगई निपाह से मिला जहां सुअर के संपर्क में रहने वाले किसान एन्सेफलाइटिस से बीमार हो गए।

1999 के प्रकोप में, निपा वायरस ने सूअरों में अपेक्षाकृत मामूली बीमारी पैदा की, लेकिन 100 से अधिक मौतों के साथ लगभग 300 मानव मामलों की सूचना मिली। प्रकोप को रोकने के लिए, दस लाख से अधिक सूअरों को euthanized किया गया था, जिससे मलेशिया के लिए जबरदस्त व्यापार नुकसान हुआ। इस प्रकोप के बाद से, मलेशिया या सिंगापुर में बाद के मामलों (न तो स्वाइन और न ही मानव में) की सूचना मिली है।

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2001 में, बांग्लादेश में होने वाली मानव बीमारी के फैलने में एनवी को फिर से कारक एजेंट के रूप में पहचाना गया था।

धीरे धीरे यह मनुष्यों में पहुँच गया। यह वायरस एक इंसान से दूसरे इंसान तक भी संपर्क से फ़ैल रहा है। इसके साथ संक्रमित मरीजों की मृत्यु दर 70% है। यह घरेलू जानवरों से बीमारियों को उत्पन्न करने में सक्षम है।

निफा वायरस कैसे फैलता है?

  • निफा वायरस चमगादड़ों से फैलता है।
  • निफा वायरस चमगादड़ों के पेशाब,  लार और शरीर से निकलने वाले द्रव आदि में होता है।
  • यह वायरस शरीर के सीधे स्पर्श या संपर्क के माध्यम से अन्य लोगों में जा सकता है।
  • ये बीमारी चमगादड़ों के जरिए सीधे मनुष्य से मनुष्य में आ सकती होती है।
  • खजूर की खेती करने वाले लोग फ्रूट बैट्स की चपेट में आ जाते हैं। इसके बाद एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में इस वायरस का प्रसार होता है।
  • इसलिए जिन लोगों को ये बीमारी होती है, उनसे संपर्क में आने के लिए जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए।
  • जो लोग ऐसे लोगों की देखभाल में लगे हैं, वे इस संक्रमण से ग्रसित होने के हाई रिस्क पर हैं और इसलिए उन्हें ज़भी ज़रूरी स्टेप्स लेकर किसी भी बॉडी फ्लूइड के संपर्क में आने से बचना चाहिए।

निफा वायरस के लक्षण क्या हैं?

  • वायरस से इन्फेक्ट होने के 5 से 14 दिन बाद इसके असर दिखते हैं।
  • इंफ़ेक्शन के शुरुआती दौर में सांस लेने में समस्या होती है जबकि आधे मरीज़ों में न्यूरोलॉजिकल दिक्कतें भी होती हैं।
  • NiV इंफ़ेक्शन से सांस लेने से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है या फिर जानलेवा इंसेफ़्लाइटिस हो सकता है।
  • निपाह वायरस का इंफ़ेक्शन एंसेफ़्लाइटिस से जुड़ा है, जिसमें दिमाग़ को नुक़सान होता है।
  • 3 से 14 दिन तक तेज़ बुख़ार और सिरदर्द के लक्षण हो सकते हैं। दिमागी लक्षणों से रोगी 24 से 48 घंटों में कोमा में जा सकता है।
  • निफा वायरस से बुखार के साथ सिर दर्द, थकान, भटकाव, मेंटल कंफ्यूजन, ब्रेन में सूजन, सांस लेने में दिक्कत आदि हो सकता है। केरल के कालीकट जिले में, तेज बुखार हो जाने के बाद नौ लोगों की मौत हुई।
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निफा वायरस का क्या इलाज है?

निफा वायरस या एनआईवी (निपाह वायरस) से सुअरों और अन्य घरेलू जानवरों में बीमारी हो सकती है। अभी न तो मनुष्य और न ही पशुओं के उपचार के लिये इसका टीका विकसित हुआ है।

निपाह वाइरस से मनुष्य में कई बिना लक्षण वाले संक्रमण से लेकर एक्यूट रेस्पीरेटरी सिंड्रोम और प्राणघातक इन्सैफेलाइटिस तक हो सकता है।

मनुष्य के मामलों में इसका प्राथमिक उपचार इंटेंसिव सपोर्टिव केयर (सघन सहायक देखभाल) के जरिये किया जा सकता है।

दवा रिबावायरिन drug ribavirin विट्रो में वायरस के खिलाफ प्रभावी साबित हुई है, लेकिन आज तक मानव जांच अनिश्चित रही है और रिबावायरिन की नैदानिक ​​उपयोग अनिश्चित है।

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