साइटिका को कटिस्नायुशूल या गृध्रसी भी कहते हैं। सायटिका में व्यक्ति पीठ से लेकर पैर तक दर्द से पीड़ित रहता है। यह दर्द एक साइड में होता है और कई बार इसमें चलना-फिरना भी कठिन हो जाता है। इस स्थिति में चलने, झुकने, बैठने या सोते समय भी दर्द होता है।
साइटिका का दर्द, साइटिका नर्व के संपीड़न या इरीटेशन के कारण होता है। साइटिका तंत्रिका आपके शरीर में सबसे लंबी तंत्रिका है। यह श्रोणि के पीछे से, नितम्बों के माध्यम से और दोनों तरफ से नीचे के रास्ते, पैरों तक जाती है। इसलिए साइटिका का दर्द शरीर के निच्चे के हिस्सों जैसेकि नितंबों और पैरों में महसूस होता है।
साइटिका के लक्षणों में शामिल हैं नितंब में दर्द, टखने और पैर में दर्द, सुन्नता, पैर सो जाना, स्ट्रेस, खांसी आदि में दर्द बढ़ जाना और पैर की मांसपेशियों में शक्ति महसूस नहीं होना आदि।
पहले डॉक्टर साइटिका में बेड रेस्ट की सलाह देते थे। लेकिन ऐसा करना कई बार स्थिति को फ़ौरन तो थोड़ा ठीक कर देता हैं लेकिन बाद में स्थिति बिगड़ सकती है। अस्ट्रेलियाई अध्ययनों से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि बिस्तर में पड़े रहे से केवल न्यूनतम सुधार हो सकता है या फिर स्थिति बिगड़ सकती है। जब तक चिकित्सक द्वारा विशेष रूप से सलाह नहीं दी जाती, तब तक सक्रिय रहना सही विकल्प हो सकता है। हल्के अभ्यास मदद कर सकते हैं। स्विमिंग विशेष रूप से उपयोगी है, क्योंकि इसमें पानी के अंदर रहने से वज़न का असर नहीं पड़ता। यह बिना पीठ पर जोर दिए भी किया जा सकता है।
अधिकांश लोगों में यह दर्द कुछ हफ्तों के भीतर स्वाभाविक रूप से दूर हो जाता है, हालांकि कुछ मामलों में एक वर्ष या इससे अधिक समय तक रह सकता है।
साइटिका के लक्षण क्या हैं?
साइटिका तंत्रिका के दबने या इसमें जलन से निम्न लक्षण हो सकते हैं:
- दर्द pain
- सुन्न होना numbness
- झुनझुनी जो पीठ के निचले हिस्से से फैल जाती है और एक साइड के पैर की उंगलियों तक जाती है
- काफ की मांसपेशियों या पैर और टखने को ले जाने वाली मांसपेशियों में कमजोरी
साइटिका का दर्द हल्के से बहुत अधिक हो सकता है, और छींकने, खाँसी या लंबे समय तक बैठने से बदतर हो सकता है। कटिस्नायुशूल से जुड़ा दर्द आमतौर पर पीठ से अधिक नितंबों और पैरों को प्रभावित करता है। यह दर्द कुछ लोग पीठ में भी महसूस करते हैं।
यदि लक्षण गंभीर, लगातार या समय के साथ खराब हो रहें हैं तो आपको डॉक्टर को दिखाना चाहिए। डॉक्टर आमतौर पर आपके लक्षणों के आधार पर कटिस्नायुशूल के निदान की पुष्टि कर सकता है और उचित उपचार सुझा सकता है। कभी-कभी ये आपको आगे की मदद के लिए एक विशेषज्ञ डॉक्टर या फिजियोथेरेपिस्ट के पास भेज सकते हैं।
Passive Straight Leg Raise Test
एक सिंपल टेस्ट passive straight leg raise test जो घर भी कर सकते हैं, में आपको पीठ के बल लेट जाना है और पैरों को सीधा रखना है। अब एक बार में एक पैर को उठाना है। यदि आपके एक पैर को उठाने से दर्द हो जाता है या आपके लक्षण खराब हो जाते हैं, तो यह आमतौर पर कटिस्नायुशूल का लक्षण है।
कटिस्नायुशूल या सायटिका होने के कारण क्या हैं?
अधिकांश मामलों में कटिस्नायुशूल स्लिप डिस्क के कारण होती है । स्लिप डिस्क तब होती है जब रीढ़ की हड्डियों (कशेरुक) के बीच में बैठने वाली एक डिस्क क्षतिग्रस्त हो जाती है और तंत्रिकाओं पर दबा देती है।
यह हमेशा स्पष्ट नहीं होता कि ऐसा क्यों होता है लेकिन उम्र बढ़ने के साथ डिस्क में लचीलापन कम होने लगता है और ऐसा हो सकता है।
कम सामान्य कारणों में शामिल हैं:
- रीढ़ की हड्डी का स्टेनोसिस spinal stenosis: रीढ़ की हड्डी में तंत्रिका मार्ग का संकुचित होना
- स्पोंडिलोलिस्थिसिस spondylolisthesis: जब एक कशेरुक पोजीशन से बाहर हट जाता है
- रीढ़ की हड्डी में चोट या संक्रमण spinal injury or infection
- रीढ़ की हड्डी के भीतर एक वृद्धि growth within the spine जैसे ट्यूमर
- कौडा इक्इना सिंड्रोम cauda equina syndrome: रीढ़ की हड्डी में संकुचित और क्षतिग्रस्त नसों के कारण एक दुर्लभ लेकिन गंभीर स्थिति
साइटिका का इलाज क्या है?
- अधिकांश मामले बिना उपचार के सायटिका छह सप्ताह में ठीक हो जाते हैं।
- पीठ दर्द के लिए सूजन कम करने वाली और दर्द निवारक (नॉनस्टोरायडियल एंटी इन्फ्लैमेटरी ड्रग्स ( एनएसएआईडीएस) NSIDs के समूह की दवा) ले सकते हैं।
- सक्रिय रह कर और कसरत करने से भी लाभ होता है।
- गर्म या ठंडे पैक का उपयोग करने से लक्षणों को कम करने में मदद मिल सकती है।
- एक्यूपंक्चर, आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक चिकित्सा की सलाह लेना।
कुछ मामलों में आगे के उपचार की आवश्यकता हो सकती है, जैसे:
- फिजियोथेरेपिस्ट के पर्यवेक्षण के तहत एक व्यायाम कार्यक्रम
- रीढ़ की हड्डी में सूजन कम करने और दर्दनाक दवाओं के इंजेक्शन
- अधिक असर वाली दर्द निवारक गोलियां
- मैनुअल थेरेपी, फिजियोथेरेपिस्ट, कायरोप्रैक्टर्स या ओस्टियोपैथ द्वारा किए जाते हैं)
- मनोवैज्ञानिक चिकित्सा और सपोर्ट
- रीढ़ की हड्डी में समस्या को ठीक करने के लिए दुर्लभ मामलों में सर्जरी की आवश्यकता हो सकती है।
सायटिका के लिए स्व-देखभाल
- कुछ समय तक आराम करना
- ओवर-द-काउंटर दर्दनिवारक दवा लेना
- बर्फ के पैक
- उचित आसन
- पीठ को आराम देना
- गर्म स्नान
- कड़े बिस्तर पर सोना
- पीठ के सपोर्ट वाली कुर्सी पर बैठना
- हल्के अभ्यास करना
साइटिका मे परहेज क्या हैं? क्या खाना पीना नहीं चाहिए?
आयुर्वेद के अनुसार साइटिका में वातवर्धक भोजन नहीं करना चाहिए। इसमें निम्न भोज्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए:
- दालें
- बीन्स
- तले-भुने पदार्थ
- दही, टमाटर और खट्टे पदार्थ
- आलू, बैंगन
- ठण्डा पानी
- कब्ज़ करने वाला भोजन
यह पूरी लिस्ट नहीं है। आमतौर पर शरीर में गैस अधिक बनाने वाला खाना नहीं खाना चाहिए। ठन्डे भोजन और ठंडे पानी का भी सेवन नहीं करना चाहिए।
इसके अतिरिक्त बैठे नहीं रहना चाहिए। कुछ हल्की एक्सरसाइज़ करना ज़रूरी है। नमी युक्त और ठंडी जगह से बचना चाहिए। सोने के लिए कड़ा बिस्तर इस्तेमाल करना चाहिए और कुछ सरल योग आसन करने चाहिए।
सायटिका को रोकने का उपाय क्या है?
कटिस्नायुशूल होने के अपने जोखिम को कम कर सकते हैं:
- काम पर एक बेहतर मुद्रा और उठाने वाली तकनीकों को अपना कर
- व्यायाम करने से पहले और बाद में स्ट्रेच करके
- नियमित व्यायाम करके
- सोने के लिए सही बिस्तर का चयन करके
- यदि आपका गद्दे बहुत नरम है, तो गद्दा के नीचे एक फर्म बोर्ड रखें।
साइटिका की आयुर्वेदिक दवाएं
साइटिका को आयुर्वेद में वात रोग माना गया है। सायटिका रोग के उपचार के लिए वात रोग चिकित्सा की जाती है। ऐसे भोजन का सेवन किया जाता है जो शरीर में वात को कम करता है। उन भोज्य पदार्थों को नहीं लिया जाता जो वातवर्धक होते हैं।
साइटिका के उपचार में मुख्य रूप से एरेंड / कैस्टर का प्रयोग किया जाता है। इसके लिए एरण्ड पाक दवा को 2 टीस्पून की मात्रा में रात को सोते समय गर्म दूध या पानी के साथ दिया जाता है। या कैस्टर आयल को 10 ml की मात्रा में सोने से पहले गो मूत्र के साथ लेते हैं।
योगराज गुग्गुल का प्रयोग भी साइटिका में लाभप्रद है। इसे 2 टेबलेट की मात्रा में दिन में चार बार तक दिया जा सकता है। इसे भी पानी या दूध के साथ लेते हैं।
सिंहनाद गुग्गुलु की दो गोली को दिन में दो बार कल गर्म दूध के साथ लेने लाभ होता है।
प्रभावित हिस्सों की मालिश के लिए महाविषगर्भा तेल या सैन्ध्यादि तेल का इस्तेमाल कर सकते हैं। तेल से मालिश के बाद, गर्म सेंक दी जाती है। प्रभावित हिस्से को गर्म कपड़े से ढक दिया जाता है जिससे गर्मी बनी रहे।
बहुत सी अन्य दवाएं भी हैं, जिन्हें वैद्य की देख रेख में ले सकते हैं। रस औषधि वातगंजाकुश 240 mg को 3 ग्राम वैश्वानर चूर्ण के साथ ले सकते हैं। बृहत् वात चिंतामणि रस को महारस्नादी काढ़ा के साथ दिया जाता है। यह दवाएं भोजन के बाद, दिन में दो बार मंजीठ के काढ़े के साथ ली जाती है।
साइटिका के दर्द में गर्म सेंक से लाभ होता है।
सायटिका में निर्गुन्डी का काढ़ा भी लिया जा सकता है। त्रिफला का काढ़ा बनाकर कैस्टर आयल के साथ लेने से शरीर से गंदगी दूर होती है।
साइटिका में पारिजात या हरसिंगार का प्रयोग
पारिजात को हरसिंगार, हरिश्रृंगार, शेफालिका, सिउली, Night Jasmine आदि नामों से जाना जाता है। पारिजात के हिस्सों से पॉलीसैकराइड, इरिडोइड ग्लाइकोसाइड, हेनीलप्रोपेनॉइड ग्लाइकोसाइड, ß- सीटोस्टेरोल, ß-अमीरिन, हेन्ट्री-एकोंटेन, बेंज़ोइक एसिड, ग्लाइकोसाइड, nyctanthoside-a iridoid, निकेटन्थिक एसिड, फ्रीडेलिन, लुपोल, ओलेक्नोलिक एसिड, 6ß-हाइड्रोक्सीलोंगानिन, इरिडोइड ग्लूकोसिडेसार्बोरसिदेस A, B and C, अल्कलॉइड्स, फ्लोबेटांइन्स, टेरपेनॉइड्स, कार्डियक ग्लाइकोसाइड, निकेटन्थिक एसिड, फ्रीडेलिन, लुपोल, ओलेक्नोलिक एसिड, 6ß-हाइड्रोक्सीलोंगानिन, इरिडोइड ग्लूकोसिडेसार्बोरसिदेस A, B and C, अल्कलॉइड्स ,फ्लोबेटांइन्स, टेरपेनॉइड्स, कार्डियक ग्लाइकोसाइड भी इससे अलग किये गए हैं।
पारिजात को कटिस्नायुशूल sciatica, रुमेटिज्म rheumatism, गठिया gout और अन्य बहुत से वात रोगों के उपचार में प्रयोग होता है।
सायटिका में हरसिंगार के पत्तों का प्रयोग किया जाता है। हरसिंगार के 3-6 पत्तों को कूट कर पानी में उबाल, सुबह और शाम रोज़ पीने से लाभ होता है।
अथवा पारिजात के सूखे पत्तों का पाउडर, 1 चम्मच पानी के साथ लेने से राहत मिलती है।
साइटिका में योग-प्रणायाम
साइटिका के लिए एलोपैथी में कोई विशेष उपचार नहीं है। दर्द और सूजन के लिए दवाएं दी जाती है और हल्के व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। बहुत समस्या में सर्जरी करवाने के लिए कह सकते हैं।
साइटिका के दर्द से राहत के लिए योग और प्राणायाम करने से लाभ देखा जाता है। योग-प्राणायाम पूरे स्वास्थ्य को बेहतर कर सकते हैं। शरीर में जाने वाली ऑक्सीजन इसे अंदर से ही ठीक होने की ताकत देती है। हल्के व्यायाम करने से दर्द और सूजन में धीरे-धीरे राहत होती है। निम्न आसनों के करने से साइटिका में आराम होता है तथा यह आसन पीठ दर्द, सर्वाइकल, स्लिप डिस्क आदि में भी उपयोगी है :
- मर्कटासन: मर्कट का मतलब बंदर है और यह आसन एक बंदर जैसा दिखता है।
- कटी उत्तानासन: कटी=कमर और उत्तान =खिचा हुआ। इसमें पीठ के बल लेटकर कमर को ऊपर उठाते हैं।
- मकरासन: मकर का अर्थ मगरमच्छ होता है। मकरासन में शरीर की रचना मकर के समान होने के कारण इसे मकरासन कहा जाता हैं।
- शलभासन: शलभ का अर्थ टिड्डी Locust है। शलभासन करते समय शरीर का आकार शलभ की तरह होने के कारण इसे शलभासन कहा जाता हैं।
- हलासन: इसमें शरीर खेत जोतने वाले हल के समान दिखता है। हलासन से रीढ़ लचीली बनती है।
- उष्ट्रासन: ऊंट को संस्कृत में उष्ट्र कहते है। इसमें शरीर ऊंट की तरह दिखता है। अंग्रेजी में इसे Camel Pose कहते हैं।
- अर्धचंद्रासन: इसमें शरीर आधे चन्द्र की तरह झुकाया जाता है इसलिए इसे अर्ध चंद्रासन करते हैं।
यह योग आसनों में से कुछ बहुत सरल है जबकि कुछ कठिन हैं। कठिन आसनों को अपने आप से किया जाना ठीक नहीं। यदि करना हो तो भी योग विशेषज्ञ से सलाह लें। इन्हें करने के लिए शरीर में लचीलापन चाहिए। जो सरल अभायास आप से हो सकें वही करें।
प्राणायाम
शरीर को स्वास्थ्य रखने के लिए और रोग को दूर करने के लिए प्राणायाम रोजाना किये जा सकते हैं। यह बहुत ही सरल होते हैं और इनको करने से शरीर की सेल्स को होने वाले डैमेज से बचाव होता है। अनुलोम विलोम, नाड़ी शोधन और डीप ब्रेथिंग रोज़ करें। कपाल भाति और सूर्यभेदी प्राणायाम करने से भी लाभ होता है। साइटिका में आराम धीरे धीरे मिलता है। सही भोजन, लाइफस्टाइल और दवाओं के द्वारा दर्द, सूजन और अन्य लक्षणों से राहत मिल सकती है।
Sciatica is a symptom of a problem with the sciatic nerve. Sciatic nerve controls muscles in the back of knee and lower leg and provides feeling to the back of thigh, part of lower leg, and the sole of foot. In sciatica, person suffers from pain, weakness, numbness, or tingling. It can start in the lower back and extend down to leg to calf, foot, or even your toes. It’s usually on only one side of your body.
The diagnostic evaluation includes a medical history and physical exam. Sometimes imaging scans (e.g., x-ray, CT, MRI) and tests to check muscle strength and reflexes are used.
Causes of Sciatica
- A ruptured intervertebral disk
- Narrowing of the spinal canal that puts pressure on the nerve, called spinal stenosis
- An injury such as a pelvic fracture
Prevention of Sciatica
- Prevention is key to avoiding recurrence. It requires exercise, strengthening, stretching and ideal weight loss.
- Good posture during sitting, standing, sleeping
- Regular exercise with stretching and strengthening
- An ergonomic work area
- Good nutrition
- healthy weight and lean body mass
- Stress management and relaxation techniques
- No smoking
Treatment
- Sometimes sciatica goes away on its own. Treatment, include rest, ice or heat, massage, pain relievers, and gentle stretches, exercises, pain and inflammation relieving medicines, and in some cases surgery.
- Sciatica pain typically improves with rest, exercise, and other self-care measures. Chronic pain that continues despite treatment may be helped with surgery to relieve the underlying cause.
- Over-the-counter nonsteroidal anti-inflammatory drugs (NSAIDs), such as aspirin, ibuprofen or naproxen, can give relief.
- Oral Steroids can reduce the swelling and inflammation of the nerves. Steroids may provide immediate pain relief within 24 hours.
- A muscle relaxant may be given for spasms.
- Reduce muscle inflammation and pain using an ice pack for 20 minutes several times a day during the first 48 to 72 hours.
- Thereafter, a warm shower or heating pad on low setting may be added to relax the muscles.
- A short period of bed rest is okay, but more than a couple of days does more harm than good.
- If self-care treatments aren’t working within the first couple of days, consult doctor.